नमस्कार,
शास्त्र घोटाला—हिन्दी पुस्तक निर्माण का इतिहास
नोट :- निम्न सूचना ऐतिहासिक है । ऐसा हुआ है और हो रहा है । यहाँ किसी की निन्दा या स्तुति नहीं की जा रही है । जैसे, १९७५ में इन्दिरा गांधी ने आनन्द मार्ग पर प्रतिबन्ध लगाकर सभी आनन्दमार्गियों को जेल में बन्द कर दिया और बहुत सताया । तो आज, इसकी चर्चा कि—“इन्दिरा गांधी ने आनन्दमार्गियों को बहुत सताया”, यह बोलना “इन्दिरा गांधी की निन्दा” नहीं कहा जाएगा; यह इतिहास है । उसी तरह से आइए, देखें कि बाबा के हिन्दी प्रवचनों से हिन्दी किताबें कैसे बनती थी, और बन रही हैं । इतिहास और वर्तमान जानें ।
बाबा के मूल हिन्दी प्रवचनों का बंगालीकरण कैसे हुआ, उसकी परिभाषा—
बाबा ने पटना / दिल्ली / जम्मू / जयपुर / रायपुर / मुम्बई / मुजफ्फरपुर आदि कहीं भी हिन्दी क्षेत्र में बाबा ने हिन्दी में प्रवचन दिया उसको कैसेट से उतारकर सीधे हिन्दी पुस्तक नहीं बनाई जा सकती थी और है । हिन्दी पुस्तक बनाने के लिए, बाबा के हिन्दी प्रवचन का बंगालीकरण इस प्रकार से करना होगा—
अ) बाबा के हिन्दी प्रवचनों को बंगाली में अनुवाद करना होगा |
आ) फिर उस बंगाली अनुवाद को बंगाली किताब के रूप में छापना होगा |
इ) फिर उस बंगाली किताब को मूल मानकर हिन्दी में अनुवाद करना होगा |
ई) फिर उस हिन्दी अनुवाद को हिन्दी पुस्तक के रूप में छापना होगा | और उस हिन्दी पुस्तक में प्रकाशक के पृष्ठ में लिख देना “मूल बंगाली से अनूदित” ।
इस उपरोक्त पूरी प्रक्रिया को हिन्दी प्रवचनों का बंगालीकरण कहते हैं | इसी बंगालीकरण प्रक्रिया से संस्था की सभी हिन्दी पुस्तकें बनाई जाती रही हैं ।
नोट :- अगर यही अन्याय हिन्दी प्रवचन बिगड़नेवालों की भाषा के साथ हुआ होता, तो आज तक खून-ख़राबा हो गया होता ।
याद रहे, हम किसी का खून-ख़राबा नहीं चाहते । शोषण बन्द हो, यही इच्छा है ।
दुर्भाग्य है बाबा के हिन्दी प्रवचनों पर युगों से शोषण हो रहा है । और, बाबा के अपने ही शिष्यों को कोई परवाह नहीं है । यह अन्धेरी रात ज़्यादा दिन नहीं रहेगी ।
इस प्रकार से बाबा हिन्दी प्रवचनों की बरबादी जो युगों से हो रही है, अब उसका अन्त होना चाहिए ।
बंगालीकरण का अन्त होना चाहिए ।
नमस्कार,
रचना