From the Moderators: A letter
documenting the urgent need to fix the printed discourses of Lord
Shrii Shrii Ánandamúrtiji and bring them into proper condition,
was sent via this network two weeks ago. That letter has been
translated into Hindi, and two versions of it are included below for
the convenience of Hindi-speaking readers. To our Hindi Speakers:
Please read this letter and have the others in your home read it as
well. At the bottom is the original letter in English. English
speakers wishing to read it are welcome to scroll to the bottom where
you will find the original English version.
All are requested to kindly select the language and version of your choice, print and circulate it among all Márgiis you know.
BEGINNING:
Márgiis have the Right to “As Is” Discourses of Bábá -
Hindi Translation #1
बाबा
All are requested to kindly select the language and version of your choice, print and circulate it among all Márgiis you know.
BEGINNING:
Márgiis have the Right to “As Is” Discourses of Bábá -
Hindi Translation #1
बाबा
बाबा
के "ज्यों
के त्यों"
अर्थात्
विशुद्ध प्रवचनों को पढ़ने
का मार्गियों को अधिकार है
आदरणीय मार्गी भाइयो व बहनो,नमस्कार ।
योजना—हम
मार्गी लोग "ज्यों
के त्यों"
अर्थात्
विशुद्ध,
बेमिलावटी
प्रवचन कैसे प्राप्त करें
"आनन्दमार्ग डिस्कोर्सेज" एक नेटवर्क है । जो आनन्दमार्ग प्रकाशन तिलजला से, आनन्दमार्ग के प्रवर्तक श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के प्रवचनों को ‘ज्यों का त्यों‘ अर्थात् अपरिवर्त्तित और विशुद्ध-रूप में प्रकाशित कराने के लक्ष्य पर समर्पित है । आनन्दमार्ग के पुस्तकों में ऐसे अनेक स्थान हैं जहाँ पर जो छापा गया है, वह बाबा ने कभी कहा ही नहीं है । हम आनन्दमार्गियों को आमन्त्रित करते हैं कि वे बाबा के रिकार्ड किए गए प्रवचनों को सुनें और बाबा के प्रवचन की ध्वनि सुनकर उसे पुस्तक से तुलना करें और अपने परिणाम में, जो विसङ्गतियाँ मिलीं उनको, हमें ईमेल द्वारा सूचित करें । मार्गियों द्वारा भेजी गई विसङ्गतियों के उदाहरणों को इस नेटवर्क पर पोस्ट किया जाता है । जिससे सभी आनन्दमार्गियों को पता चल सके कि बाबा के प्रवचनों की पुस्तकों में क्या क्या गम्भीर गलतियाँ छाप दी गई हैं । जब अनेकों आनन्दमार्गियों को पता चल जाएगा कि बाबा के प्रवचन जो पुस्तक में छपे हुए हैं, उसमें काफ़ी मिलावट है, तब वे तिलजला आनन्दमार्ग प्रकाशन विभाग पर दबाव डालेंगे, और तब उस दबाव के फल स्वरूप आनन्दमार्ग पुस्तकों को शुद्ध करना पड़ेगा । उसी दबाव को देने के लिए मार्गियों में जागृति लाना आवश्यक है ।
मार्गी
लोग 1955-1990,
की
अवधि में प्रवचनों को सद्गुरु
के श्रीमुख से सीधा सुनते थे,
परन्तु
1990 के
बाद वे उन्हीं शब्दों को
पुस्तकों में पढ़ना चाहते
हैं लेकिन शुद्ध प्रवचन उपलब्ध
नहीं हैं
जब बाबा भौतिक रूप में थे तब मार्गी उनके सामने बैठकर सीधे ही दिव्य शिक्षाओं को ग्रहण करते थे । आज के मार्गियों को भी यह अवसर मिलना चाहिए कि उस मौके पर बाबा ने क्या कहा, बाबा का ज्यों का त्यों प्रवचन उस समय क्या था वह सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो ।
श्रीश्री
आनन्दमूर्ति जी के प्रवचनों
को ज्यों का त्यों
प्रकाशित
नहीं किया जा रहा है
यह दुर्भाग्य है कि श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के सैकड़ों प्रकाशित प्रवचनों को आज,
1.काट छाँट किया गया है;
2.मिलावट् किया गया है;
3.बाबा के वाक्यों को काटकर अन्य वाक्य लिख दिए गए हैं;
4.दूसरी और तीसरी भाषाओं जैसे अगर बाबा ने हिन्दी या अंग्रेज़ी में प्रवचन दिए, तो उन्हें कुड़ा में फेंक दिया गया । सिर्फ़ बाँग्ला भाग पुस्तक में है । अगर बाबा ने मूल प्रवचन अंग्रेज़ी में दिया है तो प्रकाशकों ने उसे पहले बङ्गाली में अनुवाद किया फिर इसे पुनः अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है । पुनः अनुवादित किए गए प्रवचन को इस प्रकार प्रकाशित और प्रस्तुत किया गया जैसे वही मूल अंग्रेज़ी प्रवचन हो ।
आज के मार्गियों को बाबा के वास्तविक शब्दों को
पढ़
पाने का कोई रास्ता ही नहीं
है
इस प्रकार प्रकाशित पुस्तकों में श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के शब्दों को ज्यों का त्यों प्रकाशित नहीं किया जा रहा है, अतः बाबा के द्वारा उच्चारित मूल शब्द पाठकों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं । १९९० के पूर्व के साधकों को यह सुविधा थी, वे गुरुदेव के प्रवचनों को सीधे सुनते थे | उसी प्रकार आज के और भविष्य के साधकों का यह अधिकार बनता है कि वे श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी द्वारा कहे गए शब्दों को—जैसा सद्गुरु श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी ने कहा है वैसा ही, पढ़ने का अवसर पाएँ । इसलिए हमारी माँग है कि प्रकाशन विभाग बाबा के समस्त प्रवचनों को "ज्यों का त्यों"रूप में प्रकाशित करे व पाठकों तक पहुँचाए । जो कि अभी अल्प सङ्ख्या में ही उपलब्ध हैं ।
भगवान
शिव और कृष्ण की शिक्षा,
dogma, भावजड़ता
का रूप ले चुकी हैं
यदि
सतर्कता नहीं की गई तो बाबा
की शिक्षाओं का भी वही हाल
होगा
इतिहास साक्षी है कि भगवान शिव और कृष्ण की शिक्षाओं में इतनी मिलावट हो चुकी है कि उनके उपदेशों की मूल आत्मा समाप्त हो चुकी है । अब जो कुछ भी उनके नाम पर रह गया है, वह सब dogma, भावजड़ता ही है । यह बड़ा ही कष्टदायक है कि आनन्दमार्ग के प्रवचन भी आज मिलावट के शिकार हो रहे हैं । कुछ लोगों ने, इस "आनन्दमार्ग डिस्कोर्सेज" नेटवर्क के प्रारंभ होने के पहले इस बात पर विश्वास नहीं किया होगा । पर यदि वे अब तक इस नेटवर्क पर विवेचना किए जा चुके प्रवचनों का पुनरीक्षण करें और यह कार्य जारी रखें तो उन्हें कोई सन्देह नहीं होगा कि आनन्दमार्ग की पुस्तकों में काफ़ी मिलावट है ।
मतवाद,उपधर्म
का विचित्र लक्षण :
एक बार
भावजड़ता स्थापित हो गया
तो
उसको हटा पाना सम्भव नहीं होता
है
यदि हमने वर्तमान स्थिति को सुधारने का प्रयास नहीं किया तो श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के प्रवचनों को ‘यथावत‘ रूप में संसार कभी नहीं देख सकेगा । जैसे भगवान शिव और कृष्ण की शिक्षाओं को समय समय पर dogma, भावजड़ता में रूपान्तरण किया जाता रहा है वही कार्य आनन्दमार्ग के प्रवचनों के साथ होने लगा है । यदि हमने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने का प्रयास नहीं किया तो बाबा की शिक्षाएँ नष्ट हो जाएँगी । मतवाद के लक्षण बड़े विचित्र होते हैं, उनके अनुयायी जिससे अभ्यस्त हो जाते हैं उसे नहीं छोड़ना चाहते भले ही वह सही हो या गलत । झूठे और भावजड़ता या dogma से जुड़े तथ्यों को अनुयायी गण, परम्परा के नाम पर उसे पकड़े रहना चाहते हैं । भारतवर्ष के लोग यह मानते हैं कि भगवान शिव गाँजा का नशा करते थे और उनके पुत्त्र का मुँह हाथी के मुँह जैसा था, ऐसी अवस्था में जनता को सच्चाई का ज्ञान करा पाना कभी सम्भव ही नहीं है । और यदि आपने उन्हें समझाने का प्रयास किया तो आप को मारपीट और गालियों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा । Dogma, भावजड़ता का यही स्वभाव है ।
यदि
हम अक्रिय मूक दर्शक बने रहे
तो
बाबा के मूल प्रवचन हमेशा के
लिए नष्ट हो जाएँगे
इसलिए यदि हम अक्रिय मूक दर्शक बने रहे और श्रीश्री आनन्दमूर्ति के प्रवचनों पर की जा रही काटछाँट के प्रति सजग रहकर उसे प्रामाणिक स्वरूप में अभी नहीं ला सके, तो भविष्य में इसमें सुधार लाना असम्भव हो जाएगा । यदि भविष्य में कोई सच्चे आनन्दमार्गी बाबा प्रवचनों की गलतियों को सुधारना चाहेंगे तो उन्हें शत्रु समझा जाएगा क्यों कि dogma, भावजड़ता इसी प्रकार चलता है । हिन्दू सम्प्रदाय के अनुयायियों को आज कोई यह नहीं सिखा सकता कि भगवान कृष्ण को गायों से कोई मतलब नहीं था—अनुयायी इस पर कभी विश्वास ही नहीं करेंगे । इसी प्रकार आनन्दमार्ग के अनुयायी भी आनन्दमार्ग के इन गलत पुस्तकों से ही अभ्यस्त हो जाएँगे जिसे वे कभी भी सुधार नहीं कर सकेंगे । वे मार्गी तो यही समझेंगे कि जो कुछ भी बीसवीं सदी के अन्त में हुआ वह सोने की तरह प्रामाणिक है अतः उसे बनाए रखा जाना चाहिए । इसलिए हमारे पास अधिक समय नहीं है या तो अभी या फिर कभी नहीं । समय बीत रहा है । यदि हम बाबा के प्रवचनों को "ज्यों के त्यों" रूप में सुरक्षित नहीं करा पाए तो वह भविष्य में कभी नहीं हो सकेगा और इससे समाज को अपूर्णीय क्षति होगी । इसलिए मूक दर्शक बने रहना समस्या का हल नहीं है । हमें आपके सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है ।
"आनन्दमार्ग
डिस्कोर्सेज नेटवर्क"आपका
सहयोग चाहता है
हमारा उद्देश्य है कि तिलजला से प्रकाशित प्रवचनों में जो मिलावट है, उसका भण्डाफोड़ करना । जिसमें हमें आपके सहयोग और सुझावों की आवश्यकता है । यथार्थतः हमें प्रत्येक आनन्दमार्गी के सहयोग की आवश्यकता है । जिनके पास बाबा के आडियो केसेट्स हैं, वे कृपया सूचित करें । और अन्य जिस किसी प्रकार से इस पुनीत कार्य में सहयोग करना चाहते हैं, वे करें । वास्तव में हम इस कठिन कार्य में सबका सहयोग चाहते हैं । सच्चे और अच्छे लोग हमेशा मदद करते हैं, परन्तु हम उन लोगों से भी इस कार्य में सहयोग चाहते हैं जिनका स्वभाव ऐसा है जो हमेशा अच्छे काम में विघ्न डालते हैं ।
गुहार
लगाओ कि आनन्दमार्ग शास्त्रों
को
"ज्यों
का त्यों"प्रकाशित
किया जाए
बाबा के अब तक प्रकाशित प्रवचनों की दुःखद स्थिति के सम्बन्ध में, सबको जागरूक करना है । उसके साथ साथ हमें आशा है कि अधिकाधिक आनन्दमार्गी, तिलजला प्रकाशन विभाग से सम्पर्क करेंगे । और वहाँ प्रकाशन में लगे हमारे भाइयों से माँग करें, उन पर दबाव डालें । हमारी माँग है कि आनन्दमार्ग-शास्त्रों में आवश्यक सुधार कार्य अविलम्ब हो । तिलजला प्रकाशन विभाग इस महत्त्वपूर्ण कार्य को जितना जल्दी शुद्ध करे वही अच्छा है । "ज्यों का त्यों" शुद्ध रूप में प्रवचन उपलब्ध होना चाहिए । इसकी प्रतीक्षा आनन्दमार्गी लोग अनन्तकाल तक नहीं करेंगे । सभी मार्गी भाइयों से अनुरोध करते हैं कि इस विषय को समझकर अन्य लोगों के बीच भी विचार करें और प्रकाशन विभाग पर दबाव डालें जिससे अपना धर्मग्रन्थ शुद्ध हो सके ।
इस पत्र को अन्य पाठकों को फारवर्ड कर दें, यही अनुरोध है ।
नित्यनिरंजन
आनन्दमार्ग डिस्कोर्स नेटवर्क सम्पादक
Márgiis have the Right to “As Is” Discourses of Bábá -
Hindi Translation #1 – ENDS HERE
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BEGINNING:
Márgiis have the Right to “As Is” Discourses of Bábá -
Hindi Translation #2
बाबा
बाबा के ‘‘ज्यों के त्यों प्रवचनों को पढ़ने का मार्गियों को अधिकार है
आदरणीय मार्गी भाइयो व बहनो,नमस्कार।
योजनाः-हम मार्गी लोग ‘‘ ज्यों के त्यों ‘‘ रूप में प्रवचन कैसे प्राप्त करें।
‘‘आनन्दमार्ग डिस्कोर्सेज‘‘ ऐंसा नेटवर्क है जो आनन्दमार्ग के प्रकाशन विभाग को आनन्दमार्ग के प्रवर्तक श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के द्वारा दिये गये प्रवचनों को ‘ज्यों का त्यों‘ अर्थात् अपरिवर्तित और शुद्धरूप में प्रकाशित कराने के लक्ष्य पर समर्पित है। हमारी पुस्तकों में ऐंसे अनेक स्थान हैं जहाँ पर वह छापा गया है जो बाबा ने कभी कहा ही नहीं है। हम आनन्दमार्गियों को आमंत्रित करते हैं कि वे बाबा के रिकार्ड किये गये प्रवचनों को सुनें और पुस्तकों में छपे उन्हीं प्रवचनों को पढें और तुलना करने पर जो भी विसंगतियाँ प्राप्त हों उन्हें लिखकर हमें ईमेल के माध्यम से भेजें। मार्गियों द्वारा भेजी गई विसंगतियों के उदाहरणों को इस नेटवर्क पर पोस्ट किया जावेगा जिससे सभी आनन्दमार्गी ,प्रकाशित किये गये आनन्दमार्ग शास्त्रों की गंभीर अस्वीकार्य त्रुटियों/विसंगतियों की दशा से परिचित हो सकें। प्रकाशित किये गये प्रवचनों की दुखद स्थिति के प्रति आनन्दमार्गियों में जागरूकता लाने के उद्देष्य से हम आशा करते हैं कि अधिक से अधिक मार्गी साथ होकर प्रकाशन विभाग पर दबाव बनाते हुए अपने शास्त्रों के शुद्धीकरण की मांग रखेंगे।
1955-1990,की अवधि में मार्गी लोग प्रवचनों को गुरु से सीधा सुनते थे, 1990 के बाद वे उन्हीं शब्दों को पुस्तकों में पढ़ रहे हैं।
जब बाबा भौतिक रूपमें थे तब मार्गी उनके सामने बैठकर सीधे ही दिव्य शिक्षाओं को ग्रहण करते थे। आज के मार्गियों को यह अनुभव ज्यों का त्यों होना चाहिये कि उन अवसरों पर बाबा ने क्या बोला।
श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के प्रवचनों को ज्यों का त्यों प्रकाशित नहीं किया जा रहा है।
यह दुर्भाग्य है कि श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के सैकड़ों प्रकाषित प्रवचनों को आज,
1.काट छाँट किया जाना,
2.संशोधन किया जाना,
3.नये सिरे से लिखा जाना,
4.दूसरी और तीसरी भाषा के अंशों को छोड़ देना, (यदि बाबा ने वह प्रवचन अनेक भाषाओं में दिया है)आदि स्थितियों से गुजरना पड़ रहा है। पुनः लिखे जाने से तात्पर्य यह है कि मानलो बाबा ने मूल प्रवचन अंग्रेजी में दिया है तो प्रकाशकों ने उसे पहले बंगाली में अनुवाद किया फिर इसे पुनः अंग्रेजी में अनुवाद किया है। पुनः अनुवादित किये गये प्रवचन को इस प्रकार प्रकाशित और प्रस्तुत किया गया जैसे वही मूल अंग्रेजी प्रवचन हो।
आज के मार्गियों को बाबा के वास्तविक शब्दों को पढ़ पाने का कोई रास्ता ही नहीं है।
इस प्रकार प्रकाशित पुस्तकों में श्रीश्री आनन्दमूर्तिजी के शब्दों को ज्यों का ज्यों प्रकाशित नहीं किया जा रहा है,अतः बाबा के द्वारा उच्चारित मूल शब्द पाठकों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। प्रारंभिक साधकों को यह सुविधा रही है कि वे गुरुदेव के प्रवचनों को सीधे सुन सकें अतः आज और भविष्य के साधकों का यह अधिकार बनता है कि वे उनके द्वारा कहे गये शब्दों को जैसा उन्होंने कहा है वैसा ही पढ़ सकने का अवसर पायें। इसलिये हमारा लक्ष्य है कि प्रकाशन विभाग बाबा के समस्त प्रवचनों को ‘‘ज्यों का त्यों‘‘ रूपमें प्रकाशित करे व पाठकों तक पहुंचाये जो कि अभी अल्प संख्या में ही उपलब्ध हैं।
भगवान शिव और कृष्ण की शिक्षायें इसी काटछाँट का शिकार होकर हठधर्मिता का रूप ले चुकी हैं यदि सतर्कता नहीं की गई तो बाबा की शिक्षाओं का भी वही हाल होगा।
इतिहास साक्षी है कि भगवान शिव और कृष्ण की शिक्षाओं में इतनी मिलावट हो चुकी है कि उनकी उनकी मूल आत्मा समाप्त हो चुकी है। अब जो कुछ भी उनमें बचा है वह अधिकाँशतः हठधर्म ही है। यह बड़ा ही कष्टदायक है कि आनन्दमार्ग के प्रवचन भी आज काटछाँट के शिकार हो रहे हैं। कुछ लोगों ने,इस नेटवर्क के प्रारंभ होने के पहले इस बात पर विश्वाश नहीं किया होगा पर यदि वे अब तक इस नेटवर्क पर विवेचना किये जा चुके प्रवचनों का पुनरीक्षण करें और यह कार्य जारी रखें तो उन्हें कोई संदेह नहीं होगा।
धर्म का अश्लील लक्षण :
एक बार हठधर्म स्थापित हो गया तो उसको हटा पाना संभव नहीं होगा।
यदि हमने वर्तमान स्थिति को सुधारने का प्रयास नहीं किया तो श्रीश्री आनन्दमूर्ति जी के प्रवचनों को ‘यथावत‘ रूपमें संसार कभी नहीं देख सकेगा। जैसे भगवान शिव और कृष्ण की शिक्षाओं को समय समय पर हठधर्म में रूपान्तण किया जाता रहा है वही कार्य आनन्दमार्ग के प्रवचनों के साथ होने लगा है। यदि हमने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने का प्रयास नहीं किया तो बाबा की शिक्षायें नष्ट हो जावेंगीं। धर्म के लक्षण बडे विचित्र होते हैं,धर्मानुयायी जिसके अभ्यस्थ हो जाते हैं उसे नहीं छोड़ना चाहते भले ही वह सही हो या गलत। झूठे और भावजड़ता या हठर्धिर्मता से जुडे तथ्यों को अनुयायीगण,परंपरा के नाम पर पकड़े रहना चाहते हैं। यदि हम अभी चुप रहे तो भारत में,जहाँ के लोग यह मानते हों कि भगवान शिव हशीश का नशा करते थे और उनके पुत्र के हाथी का सिर था,को सच्चाई का ज्ञान करा पाना कभी संभव ही नहीं होगा। और यदि आपने उन्हें समझाने का प्रयास किया तो आप को मारपीट और गालियों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। हठधर्म की प्रकृति यही है।
यदि हम अक्रिय मूकदर्शक बने रहे तो बाबा के मूल प्रवचन हमेशा के लिये नष्ट हो जावेंगे।
इसलिये यदि हम अक्रिय मूकदर्शक बने रहे और श्रीश्री आनन्दमूर्तिजी के प्रवचनों पर की जा रही काटछाँ के प्रति सजग रहकर उसे प्रामाणिक स्वरूप में अभी नहीं ला सके तो भविष्य में इसमें परिवर्तन करना असंभव हो जावेगा। यदि भविष्य में कोई सच्चे आनन्दमार्गी इस दिशा में कोई कार्य करेंगे तो उन्हें शत्रु समझा जावेगा क्यों कि हठधर्म इसी प्रकार चलता है। अनुयायियों को आज कोई यह नहीं सिखा सकता कि भगवान कृष्ण को गायों से कोई मतलब नहीं था,वे इस पर कभी विश्वाश ही नहीं करेंगे। इसी प्रकार आनन्दमार्ग की पुस्तकों में यह गलत शिक्षायें लिखी जाती रही तो आनन्दमार्ग के अनुयायी भी इसके ही अभ्यस्थ हो जावेंगे जिसे वे कभी भी दूर नहीं कर सकेंगे। वे तो यही समझोंगे कि जो कुछ भी बीसवीं सदी के अंत में हुआ वह सोने की तरह प्रामाणिक है अतः उसे बनाये रखा जाना चाहिये। इसलिये हमारे पास अधिक समय नहीं है या तो अभी या फिर कभी नहीं। घड़ी चलती जा रही है और यदि हमने बाबा के प्रवचनों को ‘‘ज्यों के ज्यों‘‘ रूपमें सुरक्षित नहीं करा पाया तो वह भविष्य में कभी नहीं हो सकेगा और इससे समाज को अपूर्णीय क्षति होगी। इसलिये मूकदर्शक बने रहना समस्या का हल नहीं है हमें आपके सक्रिय सहयोग की आवष्यकता है।
‘‘आनन्दमार्ग डिस्कोर्सेज नेटवर्क‘‘ आपका सहयोग चाहता है।
हमारा उद्देष्य प्रवचनों की काटछाँट को लगातार तेजी से प्रकाशित करने का है जिसमें हमें आपके सहयोग और सुझावों की आवश्यकता है। यथार्थतः हमें प्रत्येक आनन्दमार्गी के सहयोग की आवश्यकता है जिनके पास बाबा के आडियो केसेट्स हैं,या वे और अन्य जिस किसी प्रकार से इस पुनीत कार्य में सहयोग करना चाहते हैं। वास्तव में हम इस कठिन कार्य में सबका सहयोग चाहते हैं,सच्चे और अच्छे लोग हमेशा मदद करते हैं,हम उनलोगों से भी इस कार्य में सहयोग चाहते हैं जिनका स्वभाव अच्छे कार्य में विघ्न उत्पन्न करना है।
आनन्दमार्गियो,प्रकाशन विभाग से गुहार लगाओ कि आनन्दमार्ग शास्त्रों को ‘‘ज्यों का त्यों‘‘ प्रकाशित करना सुनिश्चित करें।
हमारे अबतक प्रकाशित प्रवचनों की दुखद स्थिति के संबंध में सबको जागरूक करने के साथ साथ हमें आशा है कि अधिकाधिक आनन्दमार्गी प्रकाशन विभाग से संपर्क करेंगे और वहाँ कार्यरत हमारे भाईयों से गुहार लगायेंगे,उन पर दवाव बनायेंगे कि आनन्दमार्गशास्त्रों में आवश्यक सुधार कार्य अविलंब करायें। प्रकाशन विभाग इस चरम कार्य को लेकर कितने जल्दी सुधार कार्य इन शास्त्रों में कर पाता है और ‘ज्यों का ज्यों‘ शुद्ध रूपमें उपलब्ध करा पाता है,इसकी प्रतीक्षा करते हुये हम उन सभी से अनुरोध करते हैं जिन्हें यह पोस्टिंग भेजी जा रही है ,कि पढ़कर अन्य मार्गियों को भी फारवर्ड करने का कष्ट करें। आदर सहित,
नित्यनिरंजन
आनन्दमार्ग डिस्कोर्स नेटवर्क एडीटर्स
Translated by Dr T.R.Sukul.
Márgiis have the Right to “As Is” Discourses of Bábá -
Hindi Translation #2 - ENDS HERE
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BEGINNING:
Márgiis have the Right to “As Is” Discourses of Bábá -
Original English Letter
Bábá
Márgiis
have the Right
to
“As Is”
Discourses of Bábá
Namaskára Respected Márgii Brothers and Sisters,
Plan: How
We Márgiis Should Get “As Is” Discourses
"Ánanda Márga Discourses" is a network, dedicated to the goal that our Ánanda Márga Publications Department should publish unaltered, pure, "As Is" discourses as delivered by Lord Shrii Shrii Ánandamúrtiji, propounder of Ánanda Márga ideology.
There are many, many places where what is printed in our books is not what Bábá spoke. We invite Ánanda Márgiis to listen to the audio recordings of Bábá's discourses, compare them to the printed versions of these discourses in our Ánanda Márga books, and email us your findings. Examples of the distortions in the printed discourses which Márgiis send us are posted to this Network so that all Ánanda Márgiis come to know what is the serious and unappreciable condition of our printed Ánanda Márga shástra.
With the raising of awareness among Ánanda Márgiis about the deplorable condition of our printed discourses, our hope is that more and more Ánanda Márgiis will help by calling out to the Publications Department, putting pressure on our brothers there, and demanding that our shástra be rectified.
1955 –
1990: Ánanda Márgiis Listened
To Guru's
Discourses Directly
After
1990: Ánanda Márgiis Should Be Able To Read
Those Very
Same Words
In Lord Shrii Shrii Ánandamúrtiji's physical presence, devotees used to sit before Him and listen to His divine teachings from Him directly. Devotees of today should get the full experience of what Bábá spoke on those occasions, as is.
Shrii
Shrii Ánandamúrtiji's Discourses:
Not Being
Printed “As Is”
Yet it is unfortunate that hundreds of Shrii Shrii Ánandamúrtiji's printed discourses today are (a) edited, (b) modified, (c) re-written, or (d) missing the content of the second and third languages when Bábá spoke in more than one language. (Re-written means that Bábá spoke in one language, say English, and the discourse was translated by Ánanda Márga Publications into another language, say Bengali, and then re-translated from that into English. The re-translated version was then published as though it were the original English discourse.)
Today's
Má́rgiis Do Not Have Access
To Read
Bábá's True Words
So, our AM books are not a direct printing of the very words Shrii Shrii Ánandamúrtiji used. Because of that, by reading a printed AM discourse today one is not receiving the actual words which Bábá spoke. Earlier devotees had the privilege of hearing Bábá's discourses directly from Him; devotees of today and the future should have the opportunity to read and enjoy Bábá's discourses "as is". And this is our goal, that our AMPS Publications Department should provide in printed form what Shrii Shrii Ánandamúrtiji has spoken "as is"—which today is available in only a small handful out of the large number of Bábá's published discourses.
Lord
Shiva's & Lord Krśńa's Teachings
Became
Distorted Into Dogma
Bábá's
Teachings on Same Path
History has witnessed that Lord Shiva's and Lord Krśńa's teachings got so adulterated that they lost almost all of their original essence and spirit. Now what remains of their "teachings" is mostly just dogma. It is tragic that at present, Ánanda Márga discourses are in that very path of distortion. Some skeptics may not have believed this before this Network was started; but if they review the distortions to Bábá's discourses which have been discussed thus far, and continue to review this Network's future reports, then there will be no doubt in their mind.
Nasty
Characteristic of Religion:
Once Dogma
Gets Established It Cannot Be Removed
If we do not do anything to rectify the current situation, then the true "As Is" discourses of Shrii Shrii Ánandamúrtiji will never be seen by the world. Just as the teachings of Lord Shiva and Krśńa became transformed into dogma with time, the discourses of Shrii Shrii Ánandamúrtiji are in the same road. If we do not stop the process, Bábá's teachings will be destroyed. Because religion has a very very nasty characteristic: whatever the followers get used to, they do not like to give up—regardless of whether it is rational or irrational. False, dogmatic ideas also followers do not like to give up. Those in India who believe that Lord Shiva was smoking hashish and that one of His sons named Gańesha had an elephant face, cannot today be convinced otherwise. And if you try to convince them, you will only receive attacks and abuse in return. So this is the nature of religion.
If We
Remain Passive Onlookers, We Will Lose
Bábá's
Original Discourses Forever
So, if we remain passive onlookers and do not fix the negative trends of introducing distortion into Shrii Shrii Ánandamúrtiji's discourses and do not bring the printed discourses up to the proper standard now, it will become impossible to change this in the future. And even if in future some sincere Ánanda Márgiis will try, they will be treated as enemies. Because this is the way religion works. Today one cannot teach the devotees of Lord Krśńa that He has nothing to do with cows; they will never believe it. In the same way, Ánanda Márgiis will become used to the wrong teachings in our AM books and they will not like to give them up. They will think that whatever was there at the end of the twentieth century, that was the gold standard for all time. And it should be kept and maintained. So we don't have any time: it is either now or never. The clock is ticking: If we do not get Bábá's discourses fixed now, it will be impossible to do so later. And that will be very bad.
So to remain a passive onlooker is not the solution. We need your active participation.
Ánanda
Márga Discourses Network
Needs Your
Support
Our goal is to publish discourse distortions frequently and on an on-going basis. We welcome your suggestions and support. Indeed, we need the help of all Márgiis who have Bábá's audio cassettes, or any sort of help one can provide.
Indeed for this great task, we need everyone's support. Good people will naturally support this work; we request those whose nature is to place obstacles in the path of good deeds, to also support this lofty task.
Ánanda
Márgiis: Raise the Cry to Publications Dept—
Our Ánanda
Marga Shástra Must Be Fixed, Must Be “As Is”
With the raising of awareness among Ánanda Márgiis about the deplorable condition of our printed discourses, our hope is that more and more Ánanda Márgiis will help by calling out to the Publications Department, putting pressure on our brothers there, and demanding that our shástra be rectified. In view of how critical it is that our AMPS Publications Department begin providing accurate, "As Is" Ánanda Márga Discourses, we further request that recipients of the postings of the Ánanda Márga Discourses Network please forward them to other Márgiis as well.
Respectfully,
Nityaniraiṋjana
Ánanda Márga Discourse Network Editors
Márgiis have the Right to “As Is” Discourses of Bábá -
Original English Letter - ENDS HERE
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From the Moderators:
The above letter documenting the urgent need to fix the printed discourses of Lord Shrii Shrii Ánandamúrtiji and bring them into proper condition, was sent via this network two weeks ago. It has been translated into Hindi, and two versions of that translation are included above for the convenience of Hindi-speaking readers.
All are requested to kindly select the language and version of your choice, print and circulate it among all Márgiis you know.